Rajani katare

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मजदूर का ईमान धर्म पूर्णिका

      "मजदूर का ईमान धर्म" पूर्णिका

मजदूर हैं तो क्या हुआ, ईमान धर्म अकूद हमारा भी, 
मेहनतकश हूँ लाचार नहीं, कुछ है वजूद हमारा भी, 

भुंसारे ही अथाना रोटी रख, निकल जाता काम पर, 
गरीबी राह का रोड़ा नहीं, काम पड़ता अदूद हमारा भी, 

दिन रात मे नत करते, थक कर चूर घर आते हम, 
जो मिले खाकर सो जाते, वक्त आएगा बावजूद हमारा भी, 

कितना कुछ करते हम,देश और समाज की खातिर,
क्यों समझ नहीं पाते, योगदान इसमें मोजूद हमारा भी,

परिश्रम करते हम, अपनी मेहनत का खाते हैं हम, 
न मांगते किसी से, अपनी मजूरी पे हक आमूद हमारा भी,

अपना खून पसीना बहा कर, इमारतें खड़ी कर देते,
कहीं नाम नहीं हमारा,कुछ तो भला होता अदूद हमारा भी, 

परिचयी नेह-
कितना भी अच्छा करें काम, मिलती हमेशा दुत्कार,
परिश्रम करते  प्रतिदिन 'हेम', फिर एक दिन दिवस क्यों मोजूद हमारा भी...? 

    पूर्णिकाकार- रजनी कटारे "हेम"
               जबलपुर म. प्र.

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2 Comments

kashish

09-May-2024 02:21 PM

Amazing

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Mohammed urooj khan

09-May-2024 01:43 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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